direct dil se
वो ज़िन्दगी भी क्या,
जो खुद के लिए जी,
अहमियत तो तब है,
जब कीसी की बन्दगी में गुज़रे।
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मंदिर मस्जिद क्यों भटका तू,
उसकी तलाश में,
जो तू अपने अंदर के रावण को मिटाया,
तो राम खुद ही प्रकटाया।
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यूँ तो कई लोग मिलते हैं,
ज़िन्दगी के सफर में,
कुछ ऐसा कर जाते हैं,
की ज़हन में बस जाते हैं।
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खुश नसीब है तू,
जो किसी की तकलीफ दूर कर सके,
जो तू किसी के काम आया,
तो रब तुझमें ही समाया।
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इस मायूसी के माहौल में,
खुद को समझाते हैं,
फिर से आएंगे वो पल,
जो खुशी और बेफ़िक्री में बीतेंगे।
- Dr. Angelica
Your hindi poetry is better.
ReplyDeletethanks a lot!
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