ख़यालात
गए थे बड़े अरसों के बाद
बचपन की यादें ताज़ा करने
पर कमबख्त दोस्त तो
किस्से अपनी तरक्की के सुना गए
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इतना गुरूर ना कर खुद पर
बारिश की बूंदे भी तो
गिरती है आसमा को छू कर
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गुज़रते वक़्त के साथ दर्द कम हो जाता है
दिल को बहलाना का यह अच्छा एक बहाना है
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भरी महफिल में जो अक्सर
बहुत हँसा करते हैं
वो तन्हाई के आलम में
चुपके रोया करते हैं
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थोड़ी सी तारीफ भी कर दिया करो कभी
ऐब निकालने का हुनर तो सब के पास है
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तरक्की के दौर में दोस्त बहुत मिले
अकेला तो तब हुआ जब नाकामयाब हुआ
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ग़ैरों से क्या करे गिले- शिकवे
दर्द तो अक्सर अपने दे जाते हैं
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उसके दर पर जा कर
अब करते हो मिन्नतें
गुनाह करते वक़्त भी
वो तेरे करीब ही था
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खुशनसीब है वो जिसका
इश्क हुआ मुक्कमल
वर्ना रोज निकलते है
आशिकों के जनाजे
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वो जिंदगी ही क्या
जिसमें मोहब्बत न हो
वो मोहब्बत ही क्या
जिसमें बंदगी न हो
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मुलाकात हो जाए तुमसे शायद कभी
गुज़रते है रोज उस राह पर इस उम्मीद में
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मोहब्बत है हमको
इश्क से ज्यादा
इश्क के खयाल से
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रहते थे हम भी मौज-मस्ती में कभी
ये ज़ालिम इश्क ने तो बवाल मचा दिया
- Dr. Angelica
It's reality of today's world..Too good and touching words.
ReplyDeleteThanks a lot
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